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Friday, September 25, 2020

प्रतिस्पर्धा

प्रतिस्पर्धा है दौड़ने की,
दौड़ना होगा बहुत तेज़,
जो रह जाएं पीछे, उन्हें आगे बढ़ने की उम्मीद न रह जाए।
ये दुनिया भी दौड़ रही हैं अपने रास्ते पर,
तुम भी दौड़ो ज़रा दोस्तों, कि कहीं हमसे पीछे रहने वाले आगे न निकल जाएं।

प्रतिस्पर्धा है जीतने की,
जीतना तो पड़ेगा ही।
जो हार जाएंगे, उन्हें फिर उठने की आस न रह जाए।
ये दुनिया जीतने वालोें से भरी है,
तुम भी जीत जाना ज़रा।
जो हार गए तो हार तुम्हारी, हौसले तुम्हारे तोड़ न जाए।

प्रतिस्पर्धा ही तो बन गई है ज़िंदगी,
भागते हैं सब कि पीछे न रह जाएं।
पर ज़िंदगी प्रतिस्पर्धा नहीं, एक खूबसूरत सफर है,
इस सफर का मज़ा लेते चलो,
पता नहीं कब दौड़ते भागते,
ये सफर खत्म हो जाए।।

Wednesday, September 2, 2020

In the abode of God...

In the abode of God,
I reached once; I saw neither gall nor malice.
I beheld merriment smiling through petals,
And cherished the strength of the beauteous sepals.
I spotted the roots; neglected yet gleeful,
And saw the stem; tough and powerful.
And when I opened my eyes...
I found myself seated amidst the tints I saw in Paradise 🌺🌷
                                 -Mahira











Tuesday, September 1, 2020

क्या गलत है?

मुझे उड़ना है...
बहुत कुछ करना है...
कि अगर मुझे उम्मीद करने की लत है,
तो इसमें क्या गलत है?

कोई हंसता है मेरे सवालों पर,
कोई देता है मुझे ही रुला,
कि मुझे अपने आप लिखनी अपनी किस्मत है,
तो इसमें क्या गलत है?

माना मैं अव्वल नहीं,
होगी मुझमें भी कमी कहीं,
पर मुझमें कुछ तो करने की काबिलियत है,
तो इसमें क्या गलत है?

चलो बन जाती हुं मैं भी दुनिया जैसी,
जिज्ञासा की कहां कोई इज़्ज़त है?
पर अगर ज़मीन पर रहकर, मिलाना चाहूं आसमां से हाथ,
तो इसमें क्या गलत है?