हौसलों की तलाश है,
मंजिल पाने की आस है।
ज़रा देख तो ध्यान से ऐ मुसाफिर,
सब कुछ तेरे बेहद पास है।
किस चीज की खोज में तू फिर रहा है दर-बदर?
चल उठ, आज कुछ कर गुज़र।
आज फिर तू उठ चला है,
सूरज भी अब तक कहां ढला है?
तेरा हाथ पकड़ कदम -कदम साथ चल रही,
ज़रा देख कुदरत का दिल कितना बड़ा है।
इन करिश्मों से अंजान, तू क्या ढूंढ रहा है बेखबर?
चल उठ, आज कुछ कर गुज़र।
आज घेरे होंगे बेशक घने बादल,
तेरे आसमान को।
पर जो बरसें न कभी ये बादल,
तो पानी कैसे मिले इंसान को?
डर मत इन बादलों से, इन्हें समझ ले अपना हमसफर,
चल उठ, आज कुछ कर गुज़र।
चल उठ, आज कुछ कर गुज़र।
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