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Saturday, September 7, 2019

ज़िंदगी औरत की



जननी ब्रह्मांड की,
संतुलन संसार का। 
साहिल है भटके का,
और किनारा मझधार का


वो प्रकृति है खिली हुई सी,
रंग ज़िन्दगी की बहार का 
कैसी अतुलनीय रचना है खुदा की 
औरत बाग़ है गुलज़ार सा......  

1 comment:

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