बहुत कुछ करना है...
कि अगर मुझे उम्मीद करने की लत है,
तो इसमें क्या गलत है?
कोई हंसता है मेरे सवालों पर,
कोई देता है मुझे ही रुला,
कि मुझे अपने आप लिखनी अपनी किस्मत है,
तो इसमें क्या गलत है?
माना मैं अव्वल नहीं,
होगी मुझमें भी कमी कहीं,
पर मुझमें कुछ तो करने की काबिलियत है,
तो इसमें क्या गलत है?
चलो बन जाती हुं मैं भी दुनिया जैसी,
जिज्ञासा की कहां कोई इज़्ज़त है?
पर अगर ज़मीन पर रहकर, मिलाना चाहूं आसमां से हाथ,
तो इसमें क्या गलत है?
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