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Sunday, September 17, 2023

कुछ कह रही तू ज़िंदगी





कुछ कह रही तू ज़िंदगी,
क्या...मैं समझ पाऊं ना।
नदी सी बह रही तू ज़िंदगी,
तुझ सा तेज़ चल पाऊं ना।

मेरी बंद आंखें सपने देखें,
तेरी बाहों में बाहें डाल चलने के।
पर ये दिल नादान ढूंढ लेता है बहाने,
बेचैन होकर मचलने के।
तू इरादे अपने मुझे समझा दे,
तब इस दिल को मैं समझाऊं ना।
कुछ कह रही तू ज़िंदगी,
क्या... मैं समझ पाऊं ना।

बचपन रंग सीखने में बिताया,
अब इन रंगों से भरे सपने बुन रहे।
कभी किये इरादे कुछ राहों पर चलने के,
और अब देखो किन राहों को चुन रहे।
ज़रा नाम बता उस किताब का जिससे पढ़े तू कहानियाँ,
अपने मन को वही किताब मैं भी पढ़ाऊं ना।
कुछ कह रही तू ज़िंदगी,
क्या... मैं समझ पाऊं ना।


2 comments:

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